Saturday, June 18, 2011

एक ताजातरीन ग़ज़ल पेशे खिदमत है....



चाँद लिपटकर बोला मुझसे,
है ऐसी तन्हाई क्यों ??
भाई भाई में खिंचती है,
इतनी गहरी खाई क्यों.



मजहब से मजहब को लड़ाते,
इंसां को ही इंसां से.
और पूछते खुदी सभी से,
ऐसी आफत आई क्यों.



भंवरे तितली से शरमाकर,
सहमे सहमे बैठे हैं.
पतझड़ में क्या फूल खिलेंगे,
ऐसी शर्त लगाई क्यों.



आँखों में कुछ साहस भरकर,
सूरज को तुम ताको तो.
क़दमों से बस नापते रहते,
अपनी ही परछाई क्यूँ.

(श्याम तिरुवा)

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