Thursday, June 2, 2011


याद आएंगे......





वो
जमीं, वो शजर* याद आएंगे,
वो रात-दिन, दोपहर याद आएंगे.


जब
ज़िन्दगी मायूस कर देगी मुझे,
तेरे हौसले के वो लफ्ज याद आएंगे.


देर
तलक रात में जब नींद नहीं आयेगी,
माँ की हाथो के वो सिराहने याद आएंगे.


गर
ज़िन्दगी बेस्वाद सी लगने लगेगी,
तेरे हाथों के दो निवाले याद आएंगे.


और
जब दुवायें भी न बचेंगी तेरी,
तो ये मस्जिद, ये शिवाले याद आएंगे.

*शजर- पेड़

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