एक ग़ज़ल....
आज फिर उसको भुलाने की कसम खाई है,
मौत से हाथ मिलाने की घडी आई है.
लहू भी ले लो मेरा, जान भी ले लो मेरी,
वो फिर से आज, मुझे देख मुस्कुराई है.
कह दो ख्वाबों से कोई, अब यहाँ का रुख न करे,
मेरी तो वज्म में, तन्हाई ही तन्हाई है.
जो जिसे चाहता है, वो उसे नहीं मिलता,
तूने दुनिया भी क्या, अजीब सी बनाई है.
मैं यहाँ किसको ''श्याम'' अपना कहूँ,
मेरी तो ज़िन्दगी, लगती मुझे पराई है.
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