Wednesday, May 25, 2011

ज़रा गौर फरमाएं...

कोई तो राह-ए-क़यामत आये,
मेरे बैचैन दिल को भी राहत आये.

तू मुझे आधा-अधूरा सा है नहीं मंजूर,
जब भी आये तो वही सारा सलामत आये.

मैं बड़े हक से मांगता हु तुझे,
क़ि खुदा मेरी अमानत लाये.

उसने मोड़ा तो बता तूने क्यों रुख मोड़ लिया,
ऐसे आशिक पे तो फिर लानत-ए-लानत जाये.

मैं उसे खो के बड़ा मुतमईन सा बैठा हूँ,
मुझे पता है वो मेरा है, जहाँ तक जाये.

कोई तो लफ्ज, वो कभी कहदे ''श्याम'' तेरे लिए,
नहीं खुलूस तो बेशक वो शिकायत लाये.


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