आप सभी के लिए एक नयी ग़ज़ल ले कर आया हूँ..ज़रा गौर फरमाइए...
समझ में कुछ नहीं आता,
न जाने कैसी उल्फत है.
उसे पाना भी किस्मत थी,
उसे खोना भी किस्मत है.
जहाँ से मैं चला था,
अब भी देखो मैं वहीं पर हूँ.
मेरे कुछ चाहने वाले,
इसे कहते हैं बरक़त है.
उजाले ठीक से होने भी न,
पाए थे राहों में.
अँधेरे सामने दिखते,
खुदा ये कैसी हरकत है.
वो मेरे सामने बैठा है,
नज़रों में समाया है.
कभी लगता है ये सच है,
कभी लगता है ग़फलत है.
वो कहता है भुलाना मत,
मैं कहता याद आना तुम.
मैं उसकी बात पर राजी हूँ,
और वो मुझसे सहमत है.
(श्याम तिरुवा)
nice ji
ReplyDeletebahut achchhe.
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