Friday, July 8, 2011

एक ग़ज़ल....

ये खुशियों के पल ढूंढ लायी कहाँ से,
ऐसे अचानक तू आयी कहाँ से.

तूने तो मुझको था हँसना सिखाया,
मेरी आँख फिर भी, भर आई कहाँ से.

खुली आँख में बंद पलकों में तू है,
तू जीवन में ऐसे समाई कहाँ से.

नज़र को सुकूं है, न आराम दिल को,
ये दिल की लगी भी लगाईं कहाँ से.

(श्याम तिरुवा)

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