Sunday, July 24, 2011

अब मुझे अच्छा नहीं लगता..!!
 
ये सावन का नज़ारा....
अब मुझे अच्छा नहीं लगता..!!
ये मौसम प्यारा- प्यारा...                                                                         
अब मुझे अच्छा नहीं लगता..!!

 
 महक तेरी बसी है,
जबसे इन उखड़ी सी साँसों में,
ये खुशबू का पिटारा...
अब मुझे अच्छा नहीं लगता..!!

 
जो बैठा दो घड़ी थक के,
तेरी जुल्फों की छांव में.
वो रस्ते पे खड़ा बरगद बेचारा...
अब मुझे अच्छा नहीं लगता..!!

 
तेरे सीने में जलती आग जो,
महसूस की मैंने.
कोई शोला, शरारा....
अब मुझे अच्छा नहीं लगता..!!

 
उठाया लुत्फ़ मैंने गुफ्तगू का,
तेरे आँगन में.
ये महफ़िल का नज़ारा...
अब मुझे अच्छा नहीं लगता..!!


 
निगाहों में समाया है,
तेरा वो पुरकशिश चेहरा.
ये चंदा और सितारा...
अब मुझे अच्छा नहीं लगता..!!

 
ये आँखों से बुलाने का,
हुनर पाया है क्या तूने.
नहीं मासूम सा कोई इशारा...
अब मुझे अच्छा नहीं लगता..!!

 
तेरी नाजुक कलाई ने,
संभाला लड़खड़ाने पर.
किसी मजबूत कंधे का सहारा...
अब मुझे अच्छा नहीं लगता..!!

 
तेरी चाहत की बस एक बूँद भारी,
तिश्नगी पर है.
समंदर का किनारा...
अब मुझे अच्छा नहीं लगता..!!

 
हैं जबसे घुल गए अलफ़ाज़ तेरे,
मेरे कानों में.
ज़माने भर का ये संगीत सारा...
अब मुझे अच्छा नहीं लगता..!!
(श्याम तिरुवा)

Friday, July 22, 2011

ख्वाहिश......!!!!


रूठ जाने की आदत..अजी छोड़िये,
दिल जलाने की आदत...अजी छोड़िये.


जब मैं देखूं न चेहरा छुपाया करें,
यूँ सताने की आदत...अजी छोड़िये.


चुपके-चुपके से मुझपे सितम ढाके फिर,
मुस्कुराने की आदत...अजी छोड़िये.


मुझसे रूठें, तो फिर, रूठ ही जाइए,
मान जाने की आदत...अजी छोड़िये.


आप ही ने तो हँसना सिखाया मुझे,
अब रुलाने की आदत...अजी छोड़िये.

(श्याम तिरुवा)

ख्वाहिश......!!!!


रूठ जाने की आदत..अजी छोड़िये,
दिल जलाने की आदत...अजी छोड़िये.


जब मैं देखूं न चेहरा छुपाया करें,
यूँ सताने की आदत...अजी छोड़िये.


चुपके-चुपके से मुझपे सितम ढाके फिर,
मुस्कुराने की आदत...अजी छोड़िये.


मुझसे रूठें, तो फिर, रूठ ही जाइए,
मान जाने की आदत...अजी छोड़िये.


आप ही ने तो हँसना सिखाया मुझे,
अब रुलाने की आदत...अजी छोड़िये.

(श्याम तिरुवा)





ख्वाहिश......!!!!


रूठ जाने की आदत..अजी छोड़िये,
दिल जलाने की आदत...अजी छोड़िये.


जब मैं देखूं न चेहरा छुपाया करें,
यूँ सताने की आदत...अजी छोड़िये.


चुपके-चुपके से मुझपे सितम ढाके फिर,
मुस्कुराने की आदत...अजी छोड़िये.


मुझसे रूठें, तो फिर, रूठ ही जाइए,
मान जाने की आदत...अजी छोड़िये.


आप ही ने तो हँसना सिखाया मुझे,
अब रुलाने की आदत...अजी छोड़िये.

(श्याम तिरुवा)




Friday, July 8, 2011

दोस्तों फिर एक दिलकश ग़ज़ल आपकी नज्र कर रहा हूँ...गौर फरमाएं...

मुझे छोड़ पाना यूँ, आसां नहीं है,
मेरे बिन हमेशा तड़पती रहोगी.

लगाओ न तुम कोई बेजान खुशबू,
मेरे साथ होगी...महकती रहोगी.

अब क्या करूँगा मैं इन जुगनुवों का,
मेरे पास तुम हो...चमकती रहोगी.

मेरे प्यार को रखना पायल की तरह,
जहाँ भी चलोगी...खनकती रहोगी.

तुम पत्थर हो, पत्थर की मूरत ही रहना,
कहीं मोम बनकर पिघलती रहोगी.

(श्याम तिरुवा)
एक ग़ज़ल....

ये खुशियों के पल ढूंढ लायी कहाँ से,
ऐसे अचानक तू आयी कहाँ से.

तूने तो मुझको था हँसना सिखाया,
मेरी आँख फिर भी, भर आई कहाँ से.

खुली आँख में बंद पलकों में तू है,
तू जीवन में ऐसे समाई कहाँ से.

नज़र को सुकूं है, न आराम दिल को,
ये दिल की लगी भी लगाईं कहाँ से.

(श्याम तिरुवा)

Thursday, July 7, 2011

आप सभी के लिए एक नयी ग़ज़ल ले कर आया हूँ..ज़रा गौर फरमाइए...


समझ में कुछ नहीं आता,
न जाने कैसी उल्फत है.
उसे पाना भी किस्मत थी,
उसे खोना भी किस्मत है.


जहाँ से मैं चला था,
अब भी देखो मैं वहीं पर हूँ.
मेरे कुछ चाहने वाले,
इसे कहते हैं बरक़त है.


उजाले ठीक से होने भी न,
पाए थे राहों में.
अँधेरे सामने दिखते,
खुदा ये कैसी हरकत है.


वो मेरे सामने बैठा है,
नज़रों में समाया है.
कभी लगता है ये सच है,
कभी लगता है ग़फलत है.


वो कहता है भुलाना मत,
मैं कहता याद आना तुम.
मैं उसकी बात पर राजी हूँ,
और वो मुझसे सहमत है.


(श्याम तिरुवा)

Sunday, July 3, 2011

एक ताजा ग़ज़ल आप सब की खिदमत में पेश कर रहा हूँ, आपके अच्छे और आलोचनात्मक कमेंट्स का इंतजार रहेगा...
उल्फत....!!!!


आपकी उल्फत ज़रुरत हो गयी है,
ज़िन्दगी अब खूबसूरत हो गयी है.

आपके आने से रौनक आई है,
फूल की मानिंद सूरत हो गयी है.

आपकी नज़रे इनायत क्या हुई,
ज़िन्दगी अच्छा मुहूरत हो गयी है.

आके तुम जबसे बसे हो नैन में,
आँख ये पत्थर की मूरत हो गयी है.