अब मुझे अच्छा नहीं लगता..!!
ये सावन का नज़ारा....
अब मुझे अच्छा नहीं लगता..!!
ये मौसम प्यारा- प्यारा...
अब मुझे अच्छा नहीं लगता..!!
महक तेरी बसी है,
जबसे इन उखड़ी सी साँसों में,
ये खुशबू का पिटारा...
अब मुझे अच्छा नहीं लगता..!!
जो बैठा दो घड़ी थक के,
तेरी जुल्फों की छांव में.
वो रस्ते पे खड़ा बरगद बेचारा...
अब मुझे अच्छा नहीं लगता..!!
तेरे सीने में जलती आग जो,
महसूस की मैंने.
कोई शोला, शरारा....
अब मुझे अच्छा नहीं लगता..!!
उठाया लुत्फ़ मैंने गुफ्तगू का,
तेरे आँगन में.
ये महफ़िल का नज़ारा...
अब मुझे अच्छा नहीं लगता..!!
निगाहों में समाया है,
तेरा वो पुरकशिश चेहरा.
ये चंदा और सितारा...
अब मुझे अच्छा नहीं लगता..!!
ये आँखों से बुलाने का,
हुनर पाया है क्या तूने.
नहीं मासूम सा कोई इशारा...
अब मुझे अच्छा नहीं लगता..!!
तेरी नाजुक कलाई ने,
संभाला लड़खड़ाने पर.
किसी मजबूत कंधे का सहारा...
अब मुझे अच्छा नहीं लगता..!!
तेरी चाहत की बस एक बूँद भारी,
तिश्नगी पर है.
समंदर का किनारा...
अब मुझे अच्छा नहीं लगता..!!
हैं जबसे घुल गए अलफ़ाज़ तेरे,
मेरे कानों में.
ज़माने भर का ये संगीत सारा...
अब मुझे अच्छा नहीं लगता..!!
(श्याम तिरुवा)